धैर्य का दामन पकड़
के रखो,
सब्र की मुट्ठी जकड़
के रखो,
उम्मीदों के चिराग जला के रखो,
खुशियों के दीप
जगमग करेंगे|
निराशा की घटा हटा के
रखो,
प्यार की ज्योत जला के
रखो,
इच्छा की रंगोली सजा के रखो,
आनंद के सागर छलक
उठेंगे|
क्रोध की अग्नि बुझा के रखो,
वैर के बीज
सुखा के रखो,
बातों के तीर
छुपा के रखो,
हर्ष के पौधे
लहक उठेंगे|
प्रेम की धारा
बहा के रखो,
विश्वास की नींव जमा के रखो,
आशा की किरण जगा के रखो,
जीत के झंडे
लहर उठेंगे|
श्रम के मोती चमका के रखो,
लगन की लौ बचा
के रखो,
प्रयास की सीढ़ी लगा के रखो,
शौर्य के सूरज दमक उठेंगे||
ऋता शेखर ‘मधु’