उज्जवल कुमार |
हमारी
मातृभूमि नारी-जीवन की विभिन्न भूमिकाओं की गौरव गाथा के साथ विस्तृत वर्णन करती
हैं | स्त्री काल-कन्या तथा
मृत्यु-कन्या के रूप में जानी जाती हैं | वह नारी के शरीर के रूप में जन्म लेकर परिस्थिति के अनुकूल
प्रेम तथा बलिदान की प्रतिमूर्ति
बनती हैं | उसे अपनी मातृभूमि की कन्या
संतान होने पर गर्व हैं | नारी
के जीवन को चार चरणों में बांटा गया हैं , जिनमें बचपन, किशोरावस्था, युवा-वस्था और वृधावस्था हैं | इनके जीवन की सबसे खेदपूर्ण
तथ्य यह है कि जीवन के हर पड़ाव पर स्त्री जाती उपयोग कि वस्तु बनी रहती हैं | इसके बावजूद भी नारी जाति को
मातृभूमि की महान कन्या-संतान कही जाती हैं |
मातृभूमि को दुःख इस बात का हैं कि हर जगह चाहे वह सिनेमा हो या विज्ञापन , घर अथवा झुग्गी-झोपड़ी हो या प्रदर्शनि , हर जगह उसकि नुमाईश होती हैं | इस हास्यास्पद घटना के बावजूद नारी-जाती को बड़े-बड़े आभूषणों से विभूषित किया जाता हैं |
मातृभूमि नारी के सौभाग्य तथा दुर्भाग्य को लेकर अत्यंत ही विचाराधीन हैं | कभी उसे लाल चुनरी में दुल्हन बनाया जाता है, तो कभी विधवा होने पर कही काला और कही उजला घूँघट ओढने के लिए मजबूर कर दिया जाता हैं | इस धरती पर उनके साथ इस तरह से व्यवहार किया जाता हैं जैसे कि वह अपने शरीर का स्वयं मालिक ना हो | हर तरह अंकुश, पर्दा, स्वतंत्रता एवं समानता का सीमांकन किया जाना, अनेक सामाजिक समस्याओं का सरलता से शिकार हो जाना आदि | इसके बावजूद भी नारी-जाती को अपनी मातृभूमि की महान कन्या संतान कही जाती हैं |
लेकिन आज के इस आधुनिकीकरण और तकनिकी युग में स्त्री ने प्रतिनिधि स्वरूप से युक्त होकर, सारे बन्धनों को तोड़कर जीवन की गहराई में प्रवेश कर गई हैं | इस रूप में वह अपनी वास्तविकता को पूर्ण रूप में समझ कर मातृभूमि की महानतम कन्याओं में अपनी उत्कृष्टता स्थापित कर ली हैं |
मातृभूमि को दुःख इस बात का हैं कि हर जगह चाहे वह सिनेमा हो या विज्ञापन , घर अथवा झुग्गी-झोपड़ी हो या प्रदर्शनि , हर जगह उसकि नुमाईश होती हैं | इस हास्यास्पद घटना के बावजूद नारी-जाती को बड़े-बड़े आभूषणों से विभूषित किया जाता हैं |
मातृभूमि नारी के सौभाग्य तथा दुर्भाग्य को लेकर अत्यंत ही विचाराधीन हैं | कभी उसे लाल चुनरी में दुल्हन बनाया जाता है, तो कभी विधवा होने पर कही काला और कही उजला घूँघट ओढने के लिए मजबूर कर दिया जाता हैं | इस धरती पर उनके साथ इस तरह से व्यवहार किया जाता हैं जैसे कि वह अपने शरीर का स्वयं मालिक ना हो | हर तरह अंकुश, पर्दा, स्वतंत्रता एवं समानता का सीमांकन किया जाना, अनेक सामाजिक समस्याओं का सरलता से शिकार हो जाना आदि | इसके बावजूद भी नारी-जाती को अपनी मातृभूमि की महान कन्या संतान कही जाती हैं |
लेकिन आज के इस आधुनिकीकरण और तकनिकी युग में स्त्री ने प्रतिनिधि स्वरूप से युक्त होकर, सारे बन्धनों को तोड़कर जीवन की गहराई में प्रवेश कर गई हैं | इस रूप में वह अपनी वास्तविकता को पूर्ण रूप में समझ कर मातृभूमि की महानतम कन्याओं में अपनी उत्कृष्टता स्थापित कर ली हैं |
!! जय हिन्द !!
उज्जवल कुमार
(पूर्ववर्ती छात्र )
पटना हाई स्कूल,
गर्दनीबाग पटना -२
jakash bhai
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति, भाव पूर्ण सुंदर रचना|
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