Sunday, February 19, 2012

कविता में हिसाब एवं वनस्पति शास्त्र--ऋता शेखर 'मधु'


कविता में हिसाब

कविता लिखा तो जाना
इसमें भी है भरा हिसाब
वर्ण मात्रा गिनते-गिनते
नींद  उड़ी  है सारी रात|
सत्रह  वर्णों  को गिनते
हाइकु  का बनता खाका
ज्यूँ ही  ये इकतीस बने
बन जाता  वह  ताँका|
ताँका  आगे बढ़ता जाए
होता   है   वह  चोका
तब जाकर भाव उतरता
अर्थ  आता  है  चोखा|
सोलह-सोलह गिन-गिन
बनाया   था   चौपाई
एक मात्रा खिसक गया
चौपाई  हाथ नहीं आई|
दोहा को जब आजमाया
बैठाया    तेरह-ग्यारह
वह  भी धोखा दे गया
हो गया नौ-दो-ग्यारह|
फिर भी कोशिश जारी है
लेखनी  अभी न हारी है
प्रेरणाएँ  बहुत  सारी  हैं
प्रोत्साहन की ही बारी है|
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-
कविता में वनस्पति शास्त्र
ऐ पलाश और अमलतास
ओ प्यारे गुलमोहर
क्षमा कर दो तुम सब मुझे
सौन्दर्य तुम्हारा पहचाना नहीं
जब भी देखा मैंने तुम्हे
सिर्फ बौटनी ही याद आई
तुम्हाराकिंगडम फै़मिली जाना
जीनस स्पीशीज़ ही जान पाई
जब भी हरे पत्तों को देखा
फ़ोटोसिन्थेसिस याद आया
देख तुम्हारे पुष्पों को
झट इनफ्लोरेशेंस ढूँढने लगी
पेटल्स सेपल्सगिना
एपीकैलिक्स देखने लगी
साहित्योद्यान में ज्यों रखा कदम
महत्व तुम्हारा जान गई
कवियों के दिल की धड़कन थे
सर्वत्र सिर्फ तुम ही तुम थे
अब दिखता है मुझको भी
तुम सब कितने सुन्दर हो
क्षमा कर दो सब भूल तुम
लेखनी में मेरी आ बसो तुम|

ऋता शेखरमधु

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