Saturday, September 10, 2011

विद्यार्थियों में अनुशासन का मापदंड


एक बार गुरुजी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करने के लिए जंगल के बीच से गुजर रहे थे| जंगल में अनेक हिंसक जानवर, जीव-जन्तु, पशु-पक्षियाँ, पादप-वनस्पति आदि निवास करते थे| रास्ते में कुछ चंचल और शरारती शिष्यों ने विभिन्न जीव जन्तु जैसे-बंदर, कुत्ते आदि के साथ अनेक कार्य करना आरंभ कर दिया| ऐसा देखकर गुरूजी चुपचाप उन शिष्यों को उसी रूप में छोड़कर अपने गुरूकुल के आश्रम में लौट आए| शाम होने तक जब शिष्य आश्रम में नहीं लौटे तब गुरुजी तथा अन्य शिष्यों ने मिलकर रात्रि भोजन किया|
कुछ समय के पश्चात जब आश्रम के साथी सदस्य सोने के लिए प्रस्थान कर रहे थे,तभी अन्य साथी शिष्य भटकते हुए आ गए| उन्होंने गुरूजी से यह पूछने का प्रयास किया कि वे उन्हें जंगल में ही छोड़कर क्यों चले आए|
गुरूजी ने बड़े ही नम्र भाव से कहा, ‘‘जब मैंने तुम लोगों को देखा कि अपने कर्तव्य एवं उद्देश्य पथ से अलग होकर अन्यत्र कार्य में जुट गए हो तो तुम्हें व्यर्थ परेशान करने की जरूरत ही नहीं| जब तुम छोटे से गुरुकुल आश्रम में रहकर इतना बड़ा फ़एसला स्वयं कर सकते हो तो तुम अपने जीवन के सभी मार्ग आज से स्वयं प्रशस्त करो| जहाँ तुम सभी शिष्य अपने ज्ञान के अहंकार में डूबकर अपने को सर्वश्रेष्ठ समझते हो, ठीक वही तुम्हारी अनुशासनहीनता , बड़ों की अवहेलना एवं अपने जीवन पथ पर बार-भार ठोकरें खाना तुम्हीरी समझतारी का विस्तृत मापदंड है|’’
ऐसा सुनकर शिष्यों ने गुरू के चरणों में अपने आप को नतमस्तक कर बेहतरीन एवं सर्वश्रेष्ठ इंसान बनकर समस्त मानव समुदाय की रक्षा करने का संकल्प लिया|
अनुशासन का अर्थ है शासन में रहना| शासन विवेक का हो,अपनी चिंतनशील बुद्धि का हो, अपनी सरकार का हो या अपने समाज का हो| मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है| इसमें संदेह नहीं कि उसके अपने हाथ-पैर हैं, फिर भी वह अपने आप में पूरा नहीं है|जन्म से मरण तक कदम-कदम पर उसे समाज के साथ की, उसकी सहायता की आवश्यकता पड़ती है| साथ ही कुछ नियम में बँधकर चलने की भी| समाज का नियम है कि हम माता-पिता और गुरूजनों का सम्मान करें| स्वयं आनंद से जिएँ और दूसरों को भी सानंद जीने दें| किसी के धन पर लोभ भरी नज़र न डालें बल्कि उसे मिट्टी के ढेले के समान समझें| किसी को कष्ट न पहुँचाएँ, नतो सामाजिक व्यवस्था को छिन्न- भिन्न करें और न सामाजिक शांति को ही|यह समाज का नियम है| इसका तत्परता से पालन हो,यही अनुशासन कहलाता है| इसलिए इसे नियमानुवर्तिता भी कहते हैं|
यदि हम छात्र माता-पिता एवं गुरूजनों की आज्ञा का पालन करते हैं और सामाजिक मर्यादाओ में बंधकर चलते हैं तो कहा जाएगा कि हम अनुशासित हैं|इसके विपरीत  हम माता-पिता एवं गुरूजनों की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं, उल्टे उनकी अवहेलना एवं प्रताड़ना करते हैं| समाज में लोगों को क्या कष्ट हो रहा है, इसकी चिंता किए बगैर बसें जलाते हैं,तार काट डालते हैं, दुकानों में लूटपाट करते हैं, किसी से बेमतलब विवाद मोल ले लेते हैं तो हम उच्श्रृंखल और अनुशासनहीन कहलाएंगे|आज आवश्यकता इस बात की है कि हम छात्र अनुशासनहीन और उच्श्रृंखल न रहकर अनुशासित हों और रचनात्मक कार्यों में अपनी रूचि बढ़ाएँ|
    शिष्टाचार अनुशासन का ही विस्तृत और व्यवहारिक रूप है| इतिहास साक्षी है कि
जब-जब हमने माता-पिता या गुरूजनों का तिरस्कार किया है, हमारे नीतिगत मूल्य एवं संस्कारों का पतन निरंतर होता आया है| इसलिए हम सिर्फ़ शब्द, वाक्यों एवं किताबों की पूर्ण जानकारी रखकर किताबी कीड़ा न बनें| हमें एसे व्यक्तित्व का विकास करना है , जिसकी पहचान समस्त विश्व में अविस्मरणीय रूप से हो सके क्योंकि यही छात्र देश के कर्णधार, रचनाकर्ता, विशिष्ट पहचान प्रदानकर्ता एवं सजग तथा सशक्त जिम्मेवार नागरिक भी बन सकते हैं|
  शिष्टाचार पारिवारिक एवं सामाजिक सुख की कुँजी है| इसके पालन से ही व्यक्ति की लोकप्रियता बढ़ती है और जीवन में सुख तथा गरिमा का समावेश होता है| प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज में स्वयं के लिए यथायोग्य सम्मान पाते रहना चाहता है|पर, यह तभी संभव है, जब हम परिवार एवं उसके बाहर समाज के अन्य सदस्यों को यथायोग्य सम्मान देते रहें| यदि हर व्यक्ति अनुशासन और शिष्टाचार के पालन को अपने जीवन का मूल मंत्र मानकर आत्ममंथन एवं चिंतन कर ले तो क्या परिवार और क्या समाज, पूरे राष्ट्र का ही नैतिक उन्नयन हो सकता है, जो सभी प्रकार के विकास एवं प्रगति का मूल आधार है| इसलिए हमें तत्परता से शिष्टाचार और अनुशासन का पालन करना चाहिए|

उज्जवल कुमार (पूर्ववर्ती छात्र)
संकाय- विज्ञान
रॉल न० -30 (A)
सत्र- 2009- 11
विद्यालय- शहीद राजेन्द्र प्रसाद सिंह राजकीय उच्च (+2) विद्यालय,
गर्दनीबाग,पटना-2.

4 comments:

  1. उज्जवल जी, आपने बहुत अच्छा लिखा है|
    आपका निबंध प्रेरणादायक साबित होगा|

    ReplyDelete
  2. विद्यालय की ई-पत्रिका सोपान पर पहला प्रकाशन आपका हुआ इसके लिए बधाई|
    यह बहुत ही रोचक लेख है| आगे भी रचनाएं भेजते रहें|

    ReplyDelete
  3. accha hai bhai ishi tarah likh te raho

    ReplyDelete
  4. sahi kaha sunil bhai

    ReplyDelete