Tuesday, October 18, 2011

विज्ञान के हाइकु- रवि रंजन, व्याख्याता


हाइकु, कविता लिखने की जापानी विधा है
इसमें वर्णों का क्रम 5+7+5 होता है|

घर्षण देता
चलने का सहारा
प्रतिक्रिया से|

सुर्य ग्रहण
चन्द्रमा की है छाया
धरती पर|

महा बिस्फोट
उत्पन्न हुए ग्रह
केन्द्र में सूर्य|

घर्षण बिना
चलना है मुश्किल
जीवन सार|

बड़ी दुनिया
परिधि बनी छोटी
मुट्ठी में आई|

रॉकेट  उड़ा
कृत्रिम उपग्रह
अंतरिक्ष में|

श्वेत किरण
बंटी सात रंग में
त्रिपार्श्व से ही|

नभ में बूँद
अपवर्तित हो के
इन्द्रधनुष|

त्रिपार्श्व देता
श्वेत से सात रंग
अपवर्तन|


इन हाइकुओं को हाइगा के रूप में देखने के लिए (यहां) पर क्लिक करें|


रवि रंजन
व्याख्याता,भौतिकी


Thursday, October 13, 2011

‘The East & The West’ की कहानी श्री बालमुकुन्द शर्मा जी की जु़बानी


इ-पत्रिका सोपान पटना हाई स्कूल, गर्दनीबाग, पटना-२ के द्वय सोपानों को याद कराता है|बाबा तुलसीदास के शब्द हैं-जनु सुरपुर सोपान सुहाई|सोपान क्रमानुगत सफ़लता का साधन है| सीढ़ी-दर-सीढ़ी धीरे-धीरे चढ़ो और पढ़ोः
शनैः पंथा, शनैः ग्रंथा, शनैः पर्वत लंघनम्|
शनैः विद्या, शनैर्वित्त, पंचैतानि शनैः शनैः||
इतना ही नहीं बल्कि मंजिल की ऊँचाई पा जाने पर निचाई को भी ख़्वाब में भरे रखने की शिक्षा देता है|
आदमी न ऊँचा होता है,
न नीचा होता है,
न बड़ा होता है,
न छोटा होता है,
आदमी सिर्फ़ आदमी होता है|-अटल बिहारी बाजपेयी
सन् 1975 का काल, तिथि ग्यारह, महीना भी ग्यारह- पटना हाई मे मैं पहली घंटी लेने पूर्व की सीढ़ी से चढ़ा| रूम नम्बर सात में क्लास लिया|घंटी समाप्ति के बाद निकला और पूर्व की ओर बढ़ा| तभी नव परिचित आलम साहब मिले| वह मुझे पश्चिम की ओर ले चले| मैंने कहा, इधर कहाँ? मुझे तो नीचे जाना है| इसपर उन्होंने कहा, मैं भी तो नीचे ही जा रहा हूँ|मैं चुपचाप उनके कदम से कदम मिला कर चलने लगा| जब सीढ़ी से उतरने लगा तब कहा, श्रीमान जी! यह तो ‘The East & The West’ की कहानी हो गई|
वे ठठाकर हँसे, यही तो स्कूल की खास खासियत है| जैसे-जैसे समय बीतता गया, इन सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते इतिहास को पढ़ता रहाः
अंकित है इतिहास पत्थरों पर जिनके अभियानों का
चरण-चरण पर चिह्न यहाँ मिलता जिनके बलिदानों का|
गुंजित जिनके विजय नाद से हवा आज भी बोल रही
जिनके पदाघात से कम्पित धरा अभी तक डोल रही|
रामधारी सिंह दिनकर
जब मेरा अवकाश प्राप्त करने का समय आया, नवम्बर 2008 को, अंतिम घंटी अपने वर्ग में वर्ग शिक्षक के नाते विदाई लेने गया, छात्रों ने आत्मविह्वल कर दिया| दिल दरिया हो गई- उसी बहाव में मैं भी बह गया| तब दिमाग ने पश्चिमी सोपान से उतरते कहा,
कितनी आई और गई पी
टूट चुकी अबतक कितने ही
मादक प्यालों की माला
कितने साकी अपना-अपना
काम खतम कर दूर गए
किंतु वहीं है मधुशाला|
-हरिवंश राय बच्चन|
श्री बालमुकुन्द शर्मा

अवकाश प्राप्त शिक्षक 


 शहीद राजेन्द्र प्रसाद सिंह राजकीय उच्च (+2) विद्यालय,
गर्दनीबाग,पटना-2.

Thursday, October 6, 2011

अवकाश प्राप्त शिक्षक श्री बालमुकुन्द शर्मा जी की पुस्तक ‘स्मृति’ पर मेरे विचार-रवि रंजन(+2)

(बड़ा कर के पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक कीजिए)

स्मृति पुस्तक वाकई भूली बिसरी यादों को समेटने का सार्थक प्रयास है| हम आजीवन अपने बुजुर्गों और आस-पड़ोस के लोगों से कई कहानियाँ और घटनाएँ सुनते रहते हैं जो हमारे मस्तिष्क की परतों में कैद हो जाती हैं और वक्त-बेवक्त हम अपने छोटों को सुनाते रहते हैं| यदि हम उन यादों को लेखनी के माध्यम से पुस्तक के पन्नों में कैद कर देते हैं तो वे सिर्फ़ एक खानदान की कहानियाँ न रहकर सर्वसाधारण के लिए पठनीय हो जाती हैं|यह पुस्तक मेरे लिए और भी अमूल्य है क्योंकि जब भी मैं गुरू पूर्णिमा के दिन गुरू के बारे में सोचता हूँ तो आपको ही देखता हूँ|
प्रस्तुत पुस्तक मेरे आदर्श गुरू के करकमलों द्वारा रचित है|यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक है और सर्वधर्म समभाव की भावना को जागृत करता है| भगवान और अल्लाह में संसार के पंचतत्व निहित हैं| यह परिभाषा मुझे बेहद पसन्द आई| मज़ार की चादर और शिवालय में एक ही व्यक्ति भोलासिंह का ज़िक्र है| वह जिस श्रद्धा से शिवजी की आरती गाते हैं, उसी श्रद्धा से मज़ार पर चादर चढ़ाते हैं, यह बात समाज के लोगों के लिए प्रेरणादायक है|
रवि रंजन
व्याख्याता भौतिकी