Thursday, October 6, 2011

अवकाश प्राप्त शिक्षक श्री बालमुकुन्द शर्मा जी की पुस्तक ‘स्मृति’ पर मेरे विचार-रवि रंजन(+2)

(बड़ा कर के पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक कीजिए)

स्मृति पुस्तक वाकई भूली बिसरी यादों को समेटने का सार्थक प्रयास है| हम आजीवन अपने बुजुर्गों और आस-पड़ोस के लोगों से कई कहानियाँ और घटनाएँ सुनते रहते हैं जो हमारे मस्तिष्क की परतों में कैद हो जाती हैं और वक्त-बेवक्त हम अपने छोटों को सुनाते रहते हैं| यदि हम उन यादों को लेखनी के माध्यम से पुस्तक के पन्नों में कैद कर देते हैं तो वे सिर्फ़ एक खानदान की कहानियाँ न रहकर सर्वसाधारण के लिए पठनीय हो जाती हैं|यह पुस्तक मेरे लिए और भी अमूल्य है क्योंकि जब भी मैं गुरू पूर्णिमा के दिन गुरू के बारे में सोचता हूँ तो आपको ही देखता हूँ|
प्रस्तुत पुस्तक मेरे आदर्श गुरू के करकमलों द्वारा रचित है|यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक है और सर्वधर्म समभाव की भावना को जागृत करता है| भगवान और अल्लाह में संसार के पंचतत्व निहित हैं| यह परिभाषा मुझे बेहद पसन्द आई| मज़ार की चादर और शिवालय में एक ही व्यक्ति भोलासिंह का ज़िक्र है| वह जिस श्रद्धा से शिवजी की आरती गाते हैं, उसी श्रद्धा से मज़ार पर चादर चढ़ाते हैं, यह बात समाज के लोगों के लिए प्रेरणादायक है|
रवि रंजन
व्याख्याता भौतिकी

2 comments:

  1. Respected Sir,

    It was totally an enriching experience for me to see Papa enduring this task. A lot of research went into this. Alongwith many factual elements, some literary liberty made the book quite interesting.
    Personally, I feel enlightened after going through Smriti.

    I wasn't aware of you being his disciple. See, now you are my Guru and Gurubhai at the same time! :)
    Another splendid blog. Congrats and wishes !

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  2. Sri Balmukund Sharma To Me...

    रवि जी, आप बहुत अच्छा लिखते हैं| आपकी लेखनी में शक्ति है| अनुरोध है कि इसे मज़बूती से पकड़े रखें| आपके शब्द मंजे सम्पादक-समीक्षक के हैं| सोपान के कमेन्ट स्पेस पर आपके अंकित वाक्य ने मुझे एक ही साथ ‘वन्दे विशुद्दौ विज्ञानौ, कपीश्वर-कपिश्वरौ’ का सम्वाद लगा| बहुत-बहुत साधुवाद|

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