Friday, November 18, 2011

‘‘जन लोकपाल बिल’’



उज्जवल कुमार 

जन लोकपाल बिल एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसकी ज़रूरत हमारे दैश को सालों से है|2-जी घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, चारा घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला और कई अन्य घोटाले सुर्खियों में छाए हुए हैं| प्रस्तावित बिल के तहत एक ऐसे संस्थान का गठन करने का प्रस्ताव है जिसके पास बिना सरकारी आदेश के किसी भी भ्रष्ट नेता एवं पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की सूचना मिलने पर सशक्त कारवाई करने का अधिकार होगा|

आज भ्रष्टाचार रूपी दलदल से उबरने का यही एकमात्र कड़ा उपाय है, जिसके अन्तर्गत प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायपालिका, कार्यपालिका, सी०बी०आई० तथा अन्य महत्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई को इसके दायरे में लाकर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्याय देने का प्रावधान है| साथ ही आज छोटे से लेकर बड़े क्षेत्रों तक हो रहे घोटाले के कारण अधिकांश लोग गलत रास्ते पकड़ कर या गले लगाकर उनपर चलने के लिए विवश हो जाते हैं|सिटीजन चार्टर इन्हीं समस्याओं को दूर करने का धारदार हथियार है|इसमें यदि कोई अफसर या प्रतिनिधि निर्धारित समय में काम नहीं करते हैं तो उनपर जुर्माने के साथ जेल भेजने पर भी कानून लागू किया जाएगा|


भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हमारे देश में कई संस्थान हैं ,जैसे- सी०वी०सी०, सी०बी०आई० आदि जो यह सरकार के अधीन है, परन्तु सरकार के उदासीन कारवाई के कारण इन संस्थानों पर भयंकर प्रभाव पड़ रहा है एवं इनकी शक्ति भी गौण दिखाई पड़ रही है| इन्हीं कारणों से लोकपाल को सरकार की अधीनता से दूर करके इन संस्थानों के आयोग को लोकपाल में शामिल करने की माँग की गई है|

आज के वर्तमान परिवेश में जनलोकपाल बिल का पारित होना देश के सर्वांगीण हित में है, अन्यथा देश में अराजकता फैल जाएगी एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की निर्मम हत्या दिन-प्रतिदिन अनवरत् होती रहेगी|
                          
 !! जय हिन्द !!

उज्जवल कुमार (पूर्ववर्ती छात्र)
संकाय- विज्ञान
रॉल न० -30 (A)
सत्र- 2009- 11
विद्यालय- शहीद राजेन्द्र प्रसाद सिंह राजकीय उच्च (+2) विद्यालय,
गर्दनीबाग,पटना-2.

Wednesday, November 2, 2011

जीवन का सच, ताँका में ( रचना - रवि रंजन, व्याख्याता)



ताँका कविता लिखने की एक जापानी विधा है| वर्णों का क्रम 5+7+5+7+7 होता है|  
     
स्वार्थी जग ये
निर्दोष को सताए
डटे जो रहें
अग्नि पथ पे सदा
दुनिया जीत जाएं|
    २
निःस्वार्थ सेवा
है मानव का धर्म
डगर हो सशक्त
यही बने जो लक्ष्य
जीवन हो सफल|
    ३
भ्रमित लोग
उलझे माया जाल
जीवन बढ़े
कष्ट में जब घिरे
सँभल न पाते वे|
    ४
सत्संग ही है
आत्म शुद्धि का यंत्र
अपनाएँ जो
मिटे उसका भ्रम
               
दिखे स्वस्थ डगर
    ५
रिश्ते निभाना
कठिन है तपस्या
टूट जाते जो
दोबारा हैं जुड़ते
गाँठ हैं उभरते|

रवि रंजन
व्याख्याता